शब्द विचार किसे कहते है

आप सभी का स्वागत है, मेरे इस ब्लोग पर आज हम शब्द विचार किसे कहते है? के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। शुद्ध हिंदी बोलने या लिखने के लिए हमे हिंदी व्याकरण का शुद्ध रूप आना हि चाहिए तभी जाके हम ठीक -ठाक हिंदी लिख या बोल सकते है।

हिन्दी भाषा या कोई भी भाषा में शब्दो की बडी हि भुमिका होती है। शब्द विचार किसी भी भाषा में शब्दों का बड़ा ही महत्व होता है शब्द ही सुनने वाले और बोलने वाले के बीच समन्वय स्थापित करने का सबसे बड़ा साधन होता है। दृष्टि से  देखा जाय तो शब्दों का बड़ा ही महत्व होता है।भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण होती होती है ।वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं। वर्णों का  सार्थक समूह ही वाक्य या भाषा होती है। 

शब्द विचार किसे कहते है

दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से बनने वाले सार्थक, स्वतंत्र ध्वनि समूह को शब्द कहते हैं ।जैसे- माला, तोता, नारी, गमला आदि।महाभाष्य कार महर्षि पतंजलि के अनुसार परिभाषा

 शब्द वह हैं जो कानों से सुना जा सके, बुद्धि से ग्रहण हो सके, प्रयोग से सिद्ध हो सके, जो आकाश व्यापी हो।उपर्युक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि शब्द में कई वर्ण होते हैं और उनका अर्थ व्यापक होता है।

शब्द के दो भेद होते है 

 1 . ध्वन्यात्मक शब्द 

ध्वन्यात्मक वे शब्द होते हैं, जिनके केवल ध्वनि होती है, जैसे मृदंग आदी वाद्य यंत्रो की ध्वनी।

 2 . वर्णनात्मक शब्द 

वर्णनात्मक शब्द वे होते हैं, जिन्हें कंठ के सहकर्म से बोला जाता है, जैसे -की  आदि वर्ण।वैसे वर्णनात्मक शब्द को ही मूल शब्द माना जाता है,

 फिर भी वर्णनात्मक शब्द के दो भेद किए जाते हैं, पहला सार्थक शब्द, दूसरा निरर्थक शब्द। ।
1)  सार्थक शब्द 
सार्थक शब्द उन्हे कहा जाता है, जिसका कुछ अर्थ निकलता हो। जैसे – कमल, महल, कलम आदी।
2) निरर्थक शब्द
वे शब्द निरर्थक कहलाते है, जिसका कोई अर्थ नहीं होता है – जैसे – लकम, राशि लगत आदी।
 

यहाँ यह बात ध्यान रखने योग्य है कि भाषा और बोलचाल में केवल सार्थक शब्दों का ही प्रयोग होता है, निरर्थक शब्द का कोई महत्व नहीं होता है।

 

 
सार्थक शब्द
सार्थक शब्दो के भी भेद चार होते है 

1) उत्पत्ति के आधार पर 

 
हिंदी भाषा के स्वरूप से मालूम होता है, कि इसकी उत्पत्ति और विकास में संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत आदि के अलावा अरबी-फारसी अंग्रेजी जैसे भाषा के शब्द में समाहित हुए हैं। 
उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद हैं:

 तत्सम शब्द

तत्सम वे शब्द होते हैं, जो संस्कृत भाषा के शब्द हिंदी में बिना बारी प्रयोग होते हैं ।हह शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं, जैसे – रात्रि, जेस्ट, श्रेष्ठ, कर्म, अग्नि, पवन आदि।

तद्भव शब्द-

तद्भव शब्द वह कहलाते हैं, जो संस्कृत भाषा के चलते संशोधित हिंदी भाषा में प्रयोग किए जाते हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं। जैसे – घर – घर, कर्ण- कान आदी।

देशज शब्द-

 वे शब्द जो क्षेत्रीय प्रभाव के कारण से निर्मित होने वाले प्रचलित हो गए हैं। जैसे कि जूता, घुग्गी, डिबिया, आदि

विदेशी शब्द –

समय-समय पर भारत में कई जातियां आई जो अपने साथ अपनी भाषाएं लाएं उनके प्रभाव से हिंदी शब्द भंडार में कई विदेशी भाषाओं के शब्द आ गए हैं ।से शब्द विदेशी शब्द कहे जाते हैं। यह शब्द अपने मूल रूप में हिंदी में कहते हैं। प्रयोग होने लगे हैं ।जैसे- डॉ, स्टेशन, कानून, जहाज, चाय आदि
संकर शब्द – 

 
संकर शब्द वे कहलाते हैं जो दो भाषाओं के अलग-अलग शब्दों से मिलकर बने होते हैं ।इनमें दो भाषाओं के शब्दों का मिश्रण होता है, जैसे कि ‘रेल ’अंग्रेजी भाषा का शब्द हुआ और’ यात्रा’ संस्कृत भाषा का शब्द। , जब दोनों शब्द को  मिलाकर (रेल-यात्रा )बोला जायेगा तब इस शब्द का स्वरूप संकर शब्द कहलाएगा। 
 
उदा- जिला-विनाश (अरबी + संस्कृत)।

2) रचना के आधार पर शब्द 

रचना या रूप के आधार पर शब्दो के तीन भेद होते हैं —

रूढ़ शब्द –

 उन शब्दों को रूढ़ शब्द कहां जाता है जो अन्य शब्दों से मिलकर नहीं बनते और जिनके खंड करने से कोई भी अर्थ नहीं निकलता। अर्थात जो शब्द परंपरा से किसी विशेष अर्थ के लिए प्रचलित हो और जिसके टुकड़े करने पर कोई अर्थ न निकले उन्हे रूड शब्द कहा जाता है। जैसे – पेड़, कल, आदमी, जानवर आदि। यदि इन शब्दों को खंडित किया जाए तो उनका कोई अर्थ नहीं निकलता जैसे – क, ल; आ, द, मी; आदी ये टुकड़े निरर्थक बन जाते हैं। 

यौगिक शब्द –

 उन शब्दों को यौगिक शब्द कहा जाता है जो शब्द दूसरे शब्दों के योग से बनते हैं अर्थात दो या दो से अधिक शब्द या शब्दांश के मेल से बने शब्द को यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे – बैल + गाड़ी = बैलगाड़ी।

योगरूढ शब्द –

 वे शब्द योगरूढ़ कहलाते हैं, जिनके निर्माण दो शब्दों के योग से होता है लेकिन वे किसी एक अर्थ के लिए रूढ हो जाते हैं, लेकिन किसी विशेष अर्थ को दर्शाते हो। जैसे- दशानन: दश (दस) + आनन (मुख) अर्थात दस मुखवाला साधारण अर्थ में न आकर रावण के लिये प्रयोग है।    

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3) अर्थ के आधार पर शब्द 

 अर्थ के आधार पर शब्दो के चार भेद होते हैं —

पर्यायवाची शब्द-

 किसी भी भाषा में एक जैसे भाव को व्यक्त करने वाले अन्य शब्द भी मिलते हैं। यह भी सत्य है कि ऐसे शब्दों के भावो में थोड़ा बहुत अंतर भी होता है। जिन शब्दो के अर्थ में समानता हो उन्हे पर्यायवाची शब्द कहता है, जैसे- अग्नि– आग, अनल, पर्व, ह्वव्यवाहन, हुताशन, आदी।

विलोम शब्द –

किसी भी शब्द का विपरीत अर्थ देने वाले शब्द को विलोम शब्द कहता है कुछ विपरीतार्थक शब्द स्वतंत्र होते हैं और कुछ उपसर्ग और प्रत्यय से बनाए गए शब्द होते हैं। जैसे – दिन-रात, जन्म- मरण आदी।

एकार्थी शब्द –

 जिन शब्दों का अर्थ सदा एक -सा रहता है। उन्हें एकार्थी शब्द कहा जाता है, जैसे -अथवा, यथा, रेडियो, एक्स-रे।

 अनेकार्थी शब्द –

 उन शब्दो को अनेकार्थी शब्द कहा जाता है जिनके कई, अलग-अलग अर्थ होते हैं। .ये शब्द अलग- अलग भावों का भी बोध बनाते है। जैसे – अंबर  : आकाश, कपडा  ,    कर  :  हाथ, हाथी की सूँड़, कर, क्रिया का रूप।

 
अनेकार्थी शब्दों का उपयोग किसी भी रचना में चमत्कार उत्पन्न करने के लिए किया जाता है ।इन शब्दों का उपयोग काव्य रचना में ही  ज्यादातर देखने को मिलता है ।हिंदी भाषा में ऐसे शब्दों का बाहुल्य   (Multiplicity )है ।अनेकार्थी शब्दों की भाषा अधिक सशक्त  (strong)मानी जाती है इस दृष्टि से हिंदी भाषा अत्यंत सशक्त है।

 

4) प्रयोग (विकार अथवा परिवर्तन ) के आधार पर  शब्दो के भेद

प्रयोग के अधार पर शब्द के दो प्रकार होते है
 

विकारी  शब्द

यह वह शब्द होते हैं जिनमें लिंग ,वचन, पुरुष , काल और कारक आदि के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं ।
 विकारी शब्द के चार प्रकार होते हैं ।
  ( 1) संज्ञा,( 2) सर्वनाम ,(3)विशेषण,(4) क्रिया

अविकारी शब्द

अविकारी शब्द उन्हें कहा जाता है जो सदैव एक ही रूप में बने रहते हैं। उनमें कारक लिंग वचन पुरस्कार आदि के कारण किसी भी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं होता।
अविकारी शब्द के चार प्रकार  होते हैं-
(1) क्रियाविशेषण ( 2)संबंध बोधक  ( 3)समुच्चयबोधक (4) विस्मयादिबोधक ।।

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